कभी टल नहीं सकता (कविता – कुँवर नारायण)

मैं चलते-चलते इतना थक गया हूँ, चल नहीं  सकता।           

मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नहीं सकता

कोई जब रोशनी देगा, तभी हो पाऊँगा  रोशन

मैं मिट्टी का दीया हूँ, खुद तो मैं अब जल नहीं सकता

ज़माने भर को खुशियों देने वाला, रो पड़ा आख़िर 

वो कहता था मेरे दिल में कोई गम पल नहीं सकता

वो हीरा है मगर सच पूछिये तो, है तो पत्थर ही

हज़ारों कोशिशें कर लो, पिघल या गल नहीं सकता

मैं यह एहसास लेकर, फ़िक्र करना छोड़ देता हूँ

जो होना है, वो होगा ही, कभी वो टल नहीं सकता।

 

Translation–  It can never be averted

I’m so tired of walking, can’t walk

But I’m the sun, I can’t set before dusk

 

When someone gives light, only then will I be able to shine

I’m an earthen lamp, I can’t burn myself anymore

 

The one who gave happiness to the world cried after all

He used to say that there can be no sorrow in my heart

 

It is a diamond but if you ask the truth, it is a stone only.

Try a thousand, can’t melt or melt

 

Realizing this, I stop worrying

Whatever has to happen, it will happen, it can never be averted.

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