कभी टल नहीं सकता (कविता – कुँवर नारायण)
मैं चलते-चलते इतना थक गया हूँ, चल नहीं सकता। मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नहीं सकता कोई जब रोशनी देगा, तभी हो पाऊँगा रोशन मैं मिट्टी...
मैं चलते-चलते इतना थक गया हूँ, चल नहीं सकता। मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नहीं सकता कोई जब रोशनी देगा, तभी हो पाऊँगा रोशन मैं मिट्टी...
आना आना जब समय मिले जब समय न मिले तब भी आना आना जैसे हाथों में आता है जाँगर (bodily energy) जैसे धमनियों (artery) में आता है रक्त (blood) जैसे चूल्हों (stove) में...
मैं जा रही हूँ – उसने कहा जाओ – मैंने उत्तर (answer) दिया यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफनाक (dreadful) क्रिया (verb) है. केदारनाथ सिंह
रोटी और संसद एक आदमी रोटी बेलता (role-out) है एक आदमी रोटी खाता है एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है...