आना-केदारनाथ सिंह Aanaa poem by Kedarnath Singh
आना आना जब समय मिले जब समय न मिले तब भी आना आना जैसे हाथों में आता है जाँगर (bodily energy) जैसे धमनियों (artery) में आता है रक्त (blood) जैसे चूल्हों (stove) में...
आना आना जब समय मिले जब समय न मिले तब भी आना आना जैसे हाथों में आता है जाँगर (bodily energy) जैसे धमनियों (artery) में आता है रक्त (blood) जैसे चूल्हों (stove) में...
मैं जा रही हूँ – उसने कहा जाओ – मैंने उत्तर (answer) दिया यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफनाक (dreadful) क्रिया (verb) है. केदारनाथ सिंह