दरवाज़ा (कविता)
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दरवाज़ा
घर बहुत बड़ा था
लेकिन दरवाज़ा
बहुत छोटा
धूप, हवा, बारिश
सब का आना था मना
घर में रहते थे
बस चंद लोग
एकदम अपरिचित
जैसे रेलगाड़ी के
किसी डब्बे में
बैठे हों अजनबी
खटखटाया बहुत
दरवाज़ा उस ने
भूखी प्यासी थी
प्यार की वह
खुला न फिर भी
वह बंद दरवाज़ा
तंग दिल और तंग दरवाज़े
ऐसे ही तटस्थ रहते हैं
धड़ाक से बंद हो जाते हैं इन के कपाट
मात्र चाहने वालों के
दुखों की गंध से.
– डा. कुसुम नैपसिक